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सांझ है धुंधली, दिल में हैं कल्पनाएं अनेक,
दिल के वाद थे कितने, मगर पडी एक अहम अनेक,
स्नेह निर्झर बह गया, अर्थ जीवन का ढह गया,
दिल उस घात पर टीक गया, जहाँ जमाना हंसती थी मैं रो गया
दर्द नही कोई सी पाया, ठहाके नही छिन्नेक,
गाता रह गया बैठा वहाँ, अवागा प्राणी एक,
यहीं दिलों के हाट में, जुटे मनचले यार,
कोल्हाहल, उन्सुनी कर सारा संसार
वो हंसी आज भी गूंजती है, कहती थी,
फिर भी अपने में रहती थी,
सबकी सुनती थी, सबको सुनाती थी,
साये के परिचय बिना सूक्ष्म अंतर स्तगित थी