Sunday, October 07, 2007

अशांत सांझ


सांझ है धुंधली, दिल में हैं कल्पनाएं अनेक,

दिल के वाद थे कितने, मगर पडी एक अहम अनेक,

स्नेह निर्झर बह गया, अर्थ जीवन का ढह गया,

दिल उस घात पर टीक गया, जहाँ जमाना हंसती थी मैं रो गया


दर्द नही कोई सी पाया, ठहाके नही
छिन्नेक,

गाता रह गया बैठा वहाँ, अवागा प्राणी एक,
यहीं दिलों के हाट में, जुटे मनचले यार,
कोल्हाहल, उन्सुनी कर सारा संसार


वो हंसी आज भी गूंजती है, कहती थी,
फिर भी अपने में रहती थी,
सबकी सुनती थी, सबको सुनाती थी,
साये के परिचय बिना सूक्ष्म अंतर स्तगित थी


5 comments:

Anonymous said...

jai ho jai ho !

aap hardam sahi likhte hain...yeh baat aapki dil ko chhoooo gayi....oooooooooooooo !!

Pooja said...

hey nice photograph... have u clicked it???

Unknown said...

padhke achha laga
aur sath mei ek aur baat pta chali
tumhare bare mei ni
apne bare mei
mujhe toh hindi bhi kayi baar samajh ni ati yaar:(

koi na
tumse har line ka matlab sunungi.
:) na samajh ane ka ye fayda bhi toh he :)

Anonymous said...

:):):):):)

Sashu... said...

tender and moving :) n wi such a beautiful pic to match! lovelyyy!!